महफ़िल में शोरोगुल भी था..
रौनक भी थी..
मेरी नज़रो के सामने तू था, हा तू ही था
मगर मेरे मन में तेरे होने का एहसास
कहीं नहीं था
मौसम में नमी भी थी, आसमा में बादल भी थे
ज़मीन पर बुँदे भी पड़ी थी हा बारिश भी हुई थी
मगर मेरे जीवन से पतझड़ जाने का एहसास
कहीं नहीं था....
फिज़ाओ में खुशबु भी थी, बागो में कलियाँ भी थी
बहार आने का शुबा भी था हाँ ऐसा लगा भी था
मगर मेरे मधुबन पर इस सुमधुर ऋतू का प्रकाश
कही नहीं था.....
तुम मेरे करीब आये भी थे, मेरे हाथों को थमा भी था
तुम्हारी आँखों में मेरी परछाई भी थी, हां वो में ही थी
मगर तुम्हारी बातो में वो पहले सा प्यार
कहीं नहीं था.....
मंगलवार, 23 मार्च 2010
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kya baat hai....
जवाब देंहटाएंkaha se inspire ho gayi..?
accha likha hai.. :)